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दुषित भेट
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खनखनाहट से सब लोगों का ध्यान उधर ही केन्द्रित हो जाय । हुआ भी ऐसा ही । जब वह स्वर्ण मुद्राएं निकाल कर एक-एक गिनकर मूर्ति के सामने रखता तो बड़ी जोर की आवाज करता । उन्हें देखने के लिए काफी भीड़ जमा हो गई । जैसे-जैसे भीड़ बढती गई, वैसे-वैसे सेठ का आनन्द भी बढ़ने लगा। लोगों की ओर कनखियों से देखदेख कर वह स्वरणं मुद्राएं चढ़ाता और जैसे आनन्द में उछल पड़ता।
सब मुद्राएं चढ़ाने के बाद उसने गर्व के साथ उपस्थित भीड़ को देखा, उसका सीना फूल रहा था, और फिर पुजारी जी की ओर देखा।
वृद्ध पुजारी सेठ का नाटक देख रहा था, उसने कहा“सेठ ! ये मुद्राएं वापस ले जाओ, भगवान को नहीं चढ़ सकती ।"
सेठ के अहंकार पर जैसे चोट पड़ी, वह गर्जकर बोला- 'क्यों नहीं चढ़ सकती महाराज !' ।
वृद्ध पुजारी ने गंभीर होकर कहा-'कभी दूषित व झूठी वस्तु भी भगवान को चढ़ती है ? इन मुद्राओं को तुम्हारे अहंकार ने झूठी करदी है, ये अहंकार की वासना से दूषित हैं, इन्हें हटा लो भगवान के पवित्र मंदिर से..."
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