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प्रतिध्वनि
था लंका विजय ! समुद्र को पार करना और उस महाबली रावण से लोहा लेना, और सेना क्या थी मुट्ठी भर बन्दर ! रहने को एक गाँव नहीं, शस्त्रों के नाम पर कुछ पुराने जंग खाये शस्त्र ! पर आत्मबल की एक हुंकार ने राम के चरण लंका की ओर बढ़ा दिए, राम ने लंका पर विजय ध्वज फहरा दिया-बानर सेना के बल पर नहीं, आत्मबल पर ! इसीलिए कहा है
क्रियासिद्धिः सत्वे वसति महतां नोपकरणे -धैर्यशाली जनों की शक्ति साधनों में नहीं, किन्तु उनके साहस में रहती है। साधन तो स्वयं जूट जाते हैं। जब चल पड़ने का साहस होता है तो मार्ग स्वयं दीख पड़ता है !
एक ऊँचा पहाड़ था । आस पास में उसके विषय में यह जनश्र ति थी कि उसकी चोटी पर भगवान शिवशंकर पार्वती के साथ विराज रहे हैं । दिन निकलने से पहले जो चोटी पर पर पहुंचता है उसे शिव के दर्शन हो जाते हैं। ____ एक गाँव का भोला किसान रोज अपने खेतों से उस पहाड़ी को देखता और मन ही मन फुदकता उसकी चोटी पर चढ़कर भगवान के दर्शन करने ! पर उसकी चढ़ाई थी दस मील की। और चढ़ने के लिए आधी रात को ही घर से निकल जाना पड़ता था। किसान ने एक दिन शहर से लालटेन खरीदी, तैयारी कर पहाड़ पर चढ़ने की उमंग में रात के बारह बजे ही वह घर से निकल पड़ा। पर, अपने खेत की मेंट तक आया तो उसके पाँव ठिक
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