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प्रतिध्वनि
पर, कोई भी आदमी उसके साथ विवाह करने तैयार नहीं हुआ । आखिर धन से कुरूपता तो नहीं ढंकी जा सकती ।
एक बार एक अंधा दरिद्र नौजवान कहीं से भटकता हुआ धनी के द्वार पर पहुँच गया । धनी ने उसे धन का लालच दिखाया । उसने भी सोचा - कुरूप हो या सुन्दर, आखिर मेरे लिए तो बराबर है, यहां तो भैंस और गाय में कोई फर्क नहीं, फिर रोटी का आराम तो मिलेगा, दरिद्रता चली जायेगी ।, अंधे ने उस कुरूप कन्या के साथ विवाह कर लिया ।
कुछ दिनों बाद लंका का एक बहुत बड़ा वैद्य उस नगर में आया । वह अंधों की आँख ठीक कर देता । हजारों अंधों को उसने आँख देदी थी ! नगर में उसकी हलचल मची तो कुछ लोगों ने धनी सेठ से कहा - सेठजी ! ऐसा मौका फिर से हाथ नहीं आयेगा, अपने जँवाई की आँख भी ठीक करवा लीजिए ।"
सेठ ने क्रोध में आकर उनको गाली दी - " दृष्टो ! क्या तुम यही चाहते हो कि मेरा दामाद ज्यों ही आँखों से मेरी लड़की को देखे तो उसे छोड़कर भाग निकले !"
अंधे ने जब ससुर का उत्तर सुना तो बोला- 'चलो अच्छा ही हुआ, इस घर में एक नहीं, दो अंधे मिले । मैं तो आँखों से ही अंधा हूँ, लेकिन मेरे ससुर साहब तो नीयत से भी अंधे हो रहे हैं । .....
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