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प्रतिध्वनि
वास्तव में वह ताला खुला ही था। ताले की यांत्रिक बातें सब मात्र धोखा थी। पर इसका ज्ञान तो इन तीनों को कहां था ?
वह व्यक्ति द्वार खोल कर जैसे ही बाहर आया-राजा ने उसका स्वागत किया । गणित की पहेलियां बुझाने वाले वे दोनों महानुभाव अब भी आंकड़ों से उलझ रहे थे । राजा को जब अपने सामने खड़ा देखा तो वे अवाक् से रह गये । राजा उनकी ओर देख कर हँसा-'महाशय ! समस्या से उलझ तो रहे हो, पर पहले यह भी तो देखना था कि वास्तव में समस्या कुछ है भी या नहीं ? जो समस्या को बिना समझे ही उसका समाधान खोजने में जूट जाता है, वह राज्य का प्रधान तो क्या, एक गृहस्थी का कुशल स्वामी भी नहीं बन सकता !' ।
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