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समस्था की समस्या
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के उस कक्ष में जा पहँचा, जहाँ वे दोनों पहले से ही बैठे गरिगत को पुस्तकें चाट रहे थे।
अफवाह सच निकली। उन तीनों व्यक्तियों को एक कक्ष में बंद कर द्वार पर एक विचित्र ताला लगाया गया, जिसपर अंकित गरिगत के अनेक अंक, व रेखाएं यह स्पष्ट कर रहे थे कि वास्तव में ही यह ताला खोल पाना बड़ी टेढ़ी खीर है, गरिगत की पहेलियों से जूझे बिना यह ताला नहीं खुल सकेगा। ताला लगाकर घोषणा की गई कि-'जो इस कक्ष का ताला खोलकर सर्व प्रथम बाहर आयेगा वही राज्य का प्रधान चुना जायेगा।'
दोनों व्यक्ति ताले पर लगे गणित अंको के अनुसंधान में जुट गए। बीच-बीच में गणित की पुरतके खोल-खोल कर टटोलने लगे । समय कम था, और ताला खोलना बड़ा विकट हो रहा था । भाग्य निर्णय की घड़ी निकट आ रही थी, कुछ ही क्षणों में बारा - न्यारा होने वाला था। चिता और भय के कारण उन दोनों के सिर पर से पसीने की बूंदे टप टपाने लग गई ।
तीसरा व्यक्ति जो अब तक निश्चित बैठा था, उसने न कोई गणित की पुस्तक पढ़ी, और न कोई ताले पर लिग्बे गये अंको का अध्ययन ही किया। वह कुछ देर आँखें बंद किए बैठा रहा। फिर सहसा उठा, धैर्य और शांति के साथ चलकर द्वार के ताले के पास आया । धीरे से उसने ताले पर पंजा लगाकर घुमाया तो बस ताला खुल गया।
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