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समस्या की समस्या
आज समस्याओं का युग है-चारों ओर समस्याएं खड़ी है, मनुष्य उनमें उलझ गया है वैसे ही, जैसे मौत से डरा हुआ पंछी किसी जाल में उलझ जाता है ।
पर, सचमुच ही क्या इतनी समस्याएं हैं जितनी हम सोच रहे हैं ? हम समस्या को निकट से देखते भी हैं, या केवल समस्या की कल्पना से ही स्वयं को दिग्मूढ़ बना रहे हैं ? मेरा विश्वास है, वास्तविक समस्याएं उतनी नहीं हैं, जितनी हमने कल्पना करली हैं । समस्याओं की भी समस्या यह है कि समस्या को निकट से, स्थिर विचार से देखने परखने की आदत नहीं है, किन्तु समस्या का माहोल खड़ा कर उसके कल्पित भय से ही हम अधिकांशतः व्यामूढ़ हुए जा रहे हैं।
एक कहानी है । किसी राजा को एक बुद्धिमान मंत्री की आवश्यकता हुई । उसने राज्य के बुद्धिमान व्यक्तियों की परीक्षाएं ली। अनेक परीक्षाओं के बाद तीन व्यक्ति
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