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विमल को वीरता
वसन्तोत्सव मनाया जा रहा था। गुर्जरपति भीम की उपस्थिति में गुजरात के सुप्रसिद्ध तीरंदाज अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे । पाटर की प्रजा उन वीरों को गौरव की दृष्टि से देख रही थी । उल्लास के क्षरणों में कार्यक्रम चल रहा था । अन्त में एक दूर स्थान पर लक्ष्य बनाया गया और उद्घोषणा की गई कि जो उस लक्ष्य को बींधेगा उसे पुरस्कार प्रदान किया जायेगा । यह तीरंदाजों की कसौटी थी । एक के पश्चात् दूसरे तीरंदाज आते गये, पर कोई भी उस निशान को वींध नहीं
सका ।
इतने में एक अपरिचित युवक वहाँ आया । उसका भव्य - भाल, दिव्य नेत्र, लम्बी भुजाएँ, विशाल वक्षस्थल तथा तेजस्वी चेहरे को देखकर भीमदेव प्रभावित हुआ । उसके कंधे पर धनुष्य टंगा था । उसने कहा- युवक ! क्या तुझे भी अपनी कला दिखलानी है ? युवक ने
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