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बोलते चित्र
मुहम्मद के स्नेह - स्निग्ध शब्दों को सुनकर यहूदी स्त्री अपने बिस्तर से उठ बैठी । मुहम्मद के चरणों में गिरकर अपने अपराधों की क्षमा याचना करने लगी- 'भगवन् ! मैंने तुम्हें पहचाना नहीं, तुम इन्सान नहीं, भगवान् हो । आज से तुम मेरे गुरु हो ।'
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उसका हृदय मुहम्मद के प्रति श्रद्धा और भक्ति से भर गया ।
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