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बोलते चित्र लगाकर, शिर मुंडवाकर मुझे नगर बाहर निकाल दें। उस समय मैं रोष में कहूँगा कि मुझे नगर के सभी रहस्य ज्ञात हैं, एतदर्थ मैं अपमान का बदला लूगा ।
राजा ने वैसा ही किया। मंत्री पर राजद्रोह का आरोप लगाया और उसे नगर से बाहर निकाल दिया।
मंत्री वर्षकार लिच्छिवियों की ओर चल दिया। लिच्छिवियों को जब यह वृत्त ज्ञात हुआ तब उन्होंने एक सभा बुलाई। कितनों ने कहा- वर्षकार धूर्त है, उसे गंगा पार नहीं करने देना चाहिए। कुछ लोगों ने विरोध करते हुए कहा-हमारा पक्ष लेने के कारण ही उसे निकाला गया है, एतदर्थ उसे आने देना चाहिए ।
वर्षकार लिच्छिवियों के राज्य में पहुँचा । उसने नमक मिर्ची लगाकर विस्तार से बताया कि उसका किस तरह अपमान किया गया है।
लिच्छिवियों ने कहा-बड़ा कठोर दंड दिया है, यह तो प्रत्यक्ष ही अन्याय है। हम आपको मंत्री पद पर आसीन करना चाहते हैं । आप इस पद को स्वीकार करें।
वर्षकार यही चाहता था। वह लिच्छिवियों के बीच रहने लगा। न्याय आदि करता और राजकुमारों को शिक्षा देता।
एक दिन उसने एक लिच्छिवी को एकान्त में ले जाकर पूछा, क्या तुम खेती करते हो ?
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