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में जा चुके हैं । अन्य संग्रह भी यथा समय प्रकाशित होंगे।
परम श्रद्ध य सद्गुरूवर्य राजस्थान केसरी प्रसिद्ध वक्ता पं० प्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म० के शुभाशीर्वाद से ही मैं निरन्तर गति-प्रगति कर रहा हूं। अतः इनके महान् उपकार को मैं किस प्रकार विस्मृत कर सकता हूं। साथ ही पं० प्रवर शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने पाण्डुलिपि को पढ़कर मुझे उत्साह वर्धक प्रेरणा दी है और स्नेहमूर्ति 'सरस' जी ने प्रूफ संशोधन व साज सज्जा कर मेरे भार को हलका ही नहीं किया, अपितु पुस्तक को मुद्रण कला की दृष्टि से भी अधिकाधिक सुन्दर बनाने का प्रयास किया है। उन सभी का मैं आभार मानता हूं। श्री वर्धमान स्था. जैन उपाश्रय -देवेन्द्र मुनि दादर बम्बई-२८ महावीर जयन्ती १९७१
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