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सिर का मूल्य
सिर मंगा लिये गये । तत्पश्चात् अमात्य यश को आदेश दिया कि इन सभी मस्तिष्कों को नगर के मुख्य द्वार पर जाकर बेचो | यश को यद्यपि यह अधम कार्य पसन्द नहीं था तथापि महाराज के आदेश को शिरोधार्य कर वह नगर के मुख्य द्वार पर जाकर बैठ गया । सायंकाल तक पशुओं के सिर बिक गये पर मानव का वह मस्तिष्क किसी ने भी नहीं खरीदा। अमात्य ने बिना मूल्य ही उसे देना चाहा पर उसे लेने को कोई तैयार नहीं हुआ । घृणा से सबने मुंह फेर दिया ।
सायंकाल अमात्य यश राजप्रासाद में पहुंचा । प्रियदर्शी ने पूछा- क्या सभी सिर बिक गये ।
नहीं, पशुओं के तो सभी सिर मांसहारी लोग ले गये, पर मानव का सिर बिना मूल्य भी कोई न ले गया । मानव का सिर क्र. र से क्रूर व्यक्तियों को भी पसन्द नहीं है, अमात्य ने अपनी बात पूर्ण की।
प्रियदर्शी क्या इसी एक सिर से लोग घृणा करते हैं या सभी मानवों के सिर से लोग घृणा करते हैं ?
भगवन् ! इसी मानव के सिर से नहीं । अपितु हर एक मानव के सिर से लोग घृणा करते हैं ? अमात्य ने धीरे से कहा । राजा ने बात को जरा आगे बढ़ाते हुए कहा- कल्पना करो, कभी मेरा सिर कटने का प्रसंग आये तो क्या लोग उसका भी इसी प्रकार तिरस्कार करेंगे ?
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