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________________ ३१ सिर का मूल्य महाराज प्रियदर्शी जितने तेजस्वी सम्राट थे उतने ही प्रकृति से नम्र भी थे। वे जहाँ भी श्रमणों को देखते उनके चरणों में अपना सिर भुका देते । यह बात उनके प्रधान अमात्य यश को पसन्द नहीं थी। उसने एक दिन प्रियदर्शी को नम्रता से निवेदन करते हुए कहा-इन भिक्षुओं में प्रत्येक जाति के साक्षर और निरक्षर सभी प्रकार के लोग होते हैं अतः प्रत्येक के चरणों में नमस्कार करना आपके गौरव के प्रतिकूल हैं । नमस्कार करना ही हो तो किसी योग्य पात्र को करना चाहिये। महाराज प्रियदर्शी उस समय मौन रहे मानो अमात्य की बात उन्होंने सुनी न हो । एक दिन प्रियदर्शी को सूचना मिली कि किसी व्यक्ति ने किसी का सिर काट दिया है। प्रियदर्शी ने उसी समय अपने एक विश्वस्त कर्मचारी को भेजकर वह सिर मंगा लिया साथ ही कसाई खाने से बकरा आदि पशुओं के ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003198
Book TitleBolte Chitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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