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: ३६ : दान कैसा हो?
एक धनी सेठ ने अन्नक्षेत्र खोला । सेठ में दान की की भावना तो बहुत ही कम थी पर प्रशंसा की भूख अत्यधिक थी। वह चाहता था कि समाज उसे सच्चा दानवीर समझे।
सेठजी गल्ले के बहुत बड़े व्यापारी थे। अन्न के सैकड़ों कोठार भरे हुए थे। उसमें से सड़ा-गला और घुन लगा हुआ अनाज जो बाजार में बिक नहीं सकता था उसे सेठजी अन्नक्षेत्र में भिजवा देते थे। उस सडे-गले अनाज की रोटियाँ अन्नक्षेत्र में भूखों को मिलती थीं।
सेठ के बड़े पुत्र का विवाह हुआ। बहूरानी घर में आई। वह बहुत ही सुशोल, विचारक व धार्मिक संस्कार वाली थी। उसने एक दिन अन्नक्षेत्र में जाकर देखा तो उसके आश्चर्य का पार नहीं रहा। श्वसुर के इस व्यवहार से उसे अत्यधिक दुःख हुआ। दूसरे दिन से उसने घर में भोजन बनाने का कार्य अपने हाथ में लिया । अन्नक्षेत्र से सड़ा हुआ आटा मंगवाकर उसने
दान कैसा हो ?
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