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उस व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा-धन्यवाद ! मुझे पैसे की आवश्यकता नहीं है।
ज्यों ही वह व्यक्ति जाने के लिए तैयार हुआ त्यों ही युवक के बड़े भाई अन्दर से निकल कर आये, और आते ही उस व्यक्ति के चरण-स्पर्श किये। युवक को पता चला कि जिस व्यक्ति से वह पेटी उठवाकर लाया है और जिसे कुली समझकर अपशब्द कहे थे वे बंगाल की प्रतिभामूर्ति ईश्वरचन्द्र विद्यासागर हैं। उस युवक के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई। उसने उनके चरणों में गिरकर अपने अपराध को क्षमा-याचना की।
विद्यासागर ने युवक की पीठ थपथपाते हुए कहापश्चात्ताप न करो। व्यर्थ का मिथ्या अहंकार छोड दो। अपना कार्य अपने हाथों करने में लज्जा का अनुभव न करो। मेरे देश के युवक स्वावलम्बी बनें यही मेरी मजदूरी है।
बोलती तसवीरें
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