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: २७: कर्तव्यनिष्ठा
पूना में प्लेग चल रहा था। दनादन मानव मर रहे थे। नगर की स्थिति विषम हो रही थी। उस समय लोकमान्य तिलक का ज्येष्ठ पत्र भी प्लेग के चक्कर में आ गया। पुत्र की स्थिति चिन्ताजनक थी। तिलक केसरी का अंक पूर्ण करने के लिए कार्यालय जाने की तैयारी करने लगे। उन्हें तैयार होते देख कर उनके मित्र ने टोका कि पुत्र मौत के मुंह में जा रहा है और आप कार्यालय जाने की चिन्ता कर रहे हैं। क्या यह उचित है ?
तिलक ने कहा-इसका उपचार चल रहा है । आप सभी लोग यहाँ पर हैं। इसीलिये केसरी के अंक को रोकना पाठकों के साथ अन्याय करना होगा। अतः मैं अपने कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए जा रहा हैं। और वे चल दिये।
वह थी उनमें कर्तव्य के प्रति जागरूकता। 0
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