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एक बार पंचतन्त्र के रचयिता विष्णु शर्मा अपने छात्रों के साथ खेल रहे थे। एक विशिष्ट विद्वान् उनसे मिलने के लिए पहुँचा। उसने उन्हें छात्रों के साथ खेलते हुए देखकर आश्चर्य प्रकट किया-पंडितजी ! आप इतने महान् विद्वान् होकर बच्चों के साथ खेलते हैं। आपका अमूल्य समय नष्ट हो रहा है। आपको बालकों के साथ नहीं खेलना चाहिए।
विष्णु शर्मा ने बालक से कहकर कमरे में से एक धनुष मँगवाया और कहा—मित्रप्रवर ! हमारा मन धनुष की तरह है। अगर धनुष पर डोरी हमेशा चढ़ी रहेगी तो वह कुछ ही समय में कमजोर हो जायगा। इसलिये काम पड़ने पर डोरी चढ़ानी चाहिए तो वह धनुष लम्बे समय तक मजबूत बना रहेगा। इसी प्रकार गहरे
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