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: २३ : अतिथि देव
महावीरप्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के जानेमाने विद्वान थे । एक साधारण लेखक उनसे मिलने लिए पहुँचा । भोजन का समय हो गया था । अतः द्विवेदीजी ने भोजन के लिए उससे अत्यधिक आग्रह किया । द्विवेदीजी के प्रेमभरे आग्रह के कारण वह साधारण लेखक भोजन के लिये बैठ गया, स्वयं द्विवेदी जी पंखा झलने लगे ।
नवीन लेखक द्विवेदीजी को पंखा झलते हुए देखकर शर्मा गया । उसने नम्र निवेदन करते हुए कहाआप जैसे साहित्य - मनीषी पंखा झलेंगे तो मैं भोजन नहीं कर सकूँगा क्योंकि मैं बहुत हो लघु व्यक्ति हूँ ।
द्विवेदीजी ने मुस्कराते हुए कहा- मित्रवर ! तुम इस समय मेरे से बड़े हो, क्योंकि तुम मेरे अतिथि हो । अतिथि देवस्वरूप होता है । इसलिए उसका सत्कार करना आवश्यक है ।
बोलती तसवीरें
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