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वेदना का अनुभव
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राजकुमार शिक्षा पूर्ण कर चुका था। राजा मंत्रियों के साथ राजकुमार को लिवाने के लिए आश्रम में पहुँचा। समावत न संस्कार सम्पन्न होने के पश्चात् राजकुमार ने आचार्य के श्रीचरणों में नमस्कार किया। आचार्य ने कहा-जरा ठहरो, मेरी छड़ी लेकर आओ।
राजकुमार ने छड़ी लाकर आचार्य के हाथ में थमा दी। आचार्य ने राजकुमार की पीठ पर दो छड़ी कसकर जमा दीं। छड़ी के निशान राजकुमार की पीठ पर चमक उठे। आचार्य ने राजकुमार के सिर पर हाथ रखकर कहा-वत्स ! तुम्हारा मंगल हो। अब आनन्द से जा सकते हो।
विनम्र राजकुमार नीची दृष्टि किये हुए था। वह कुछ भी नहीं बोला। किन्तु राजा आचार्य के इस
बोलती तसवीरें
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