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शान्ति का मूल मंत्र
एक युवक एक महान् योगी की सेवा में पहँचा। नमस्कार कर उसने योगी से निवेदन किया-भगवन् ! मैं वर्षों से शान्ति की अन्वेषणा कर रहा हूँ। शान्ति के लिये नदी-नाले, पहाड़-गुफाएँ सभी छान लीं। फुटबाल
की तरह इधर से उधर भटकता रहा । पर शान्ति नहीं मिली। आज भी मन में अशान्ति का ज्वालामुखी दहक रहा है। आप अनुभवो हैं । कृपा कर शान्ति का उपाय बताइये।
योगी ने स्नेहभरी दृष्टि से युवक को देखा और कहा-तुम्हें शान्ति चाहिये न ? शान्ति के लिए राजगृह के नगरश्रेष्ठी के पास पहुँच जाओ। तुम्हें अवश्य ही शान्ति प्राप्त होगी।
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