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प्रजा के लिए स्वयं हल चलाते थे और स्वयं प्रार्थना भी करते थे।
बादशाह अहमदशाह स्वयं एकाकी जंगल की ओर निकल गया। एक ऊँचे स्थान पर बैठकर वह प्रार्थना करने लगा। प्रार्थना करने में इतना तल्लीन हो गया कि उसे कुछ भी भान न रहा। वह तब तक उस स्थान से नहीं उठा जब तक भरपूर वर्षा से पृथ्वी हरी-भरी न हो गई।
यह था उसके अन्तर्मानस में प्रजा के प्रति अपार स्नेह ।
प्रजावत्सलता
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