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:५३: सद्गुण अंगूर की बेल
एक बालक ने माँ से जिज्ञासा व्यक्त की-माँ ! बबूल के पौधे की देख-रेख करने की आवश्यकता नहीं होती
और वह अपने आप ही इतना बढ़ जाता है कि मत पूछो पर आम, मोसम्बी, नारंगी के पौधों और अंगूर आदि की बेलों की कितनी रक्षा करनी पड़ती है तब जाकर वे धीरे-धीरे बढ़ते हैं। इसका क्या रहस्य है ?
माँ ने कहा-वत्स ! श्रेष्ठ वस्तुओं के लिये सदा परिश्रम करना पड़ता है। सद्गुण भी अंगूर को बेल की तरह हैं । जरा-सी भी उपेक्षा की जायेगो तो वे नष्ट हो जायेंगे और दुगुण बबूल की तरह हैं जो अपने आप बढ़ते रहते हैं। वह जब तक जिन्दा रहता है तब तक दूसरों को कष्ट देता रहता है, अतः वत्स ! तुझे बबूल नहीं, आम और अंगूर बनना है। जन-जन का प्यारा बनना है।
सद्गुण अंगूर की बेल
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