SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फूल और पराग अनिल-"मधु ! तू बिल्कुल चिन्ता न कर । समय आने पर मैं लाखों रुपये कमा सकता हूं। मेरी बुद्धि पर तो सभी को आश्चर्य है, जो कार्य अन्य व्यक्ति नहीं कर सकते हैं वह कार्य मैं कर सकता हैं। यदि आकाश भी फट जाय तो मैं उसे सांध सकता हूँ !" मधु-"बातें बनाने में आपके समान अन्य कौन कुशल है। मुझे आपकी बुद्धि पर नाज है, पर कभी चमत्कार दिखाओ तब न ।" अनिल-"हाँ अवश्य दिखाऊंगा।" रात्रि के आठ बजे थे। अनिल अभी घर पर नहीं आया था। मधु उसकी प्रतीक्षा कर रही थी कि वह आजाय तो भोजन करें। तभी द्वार के खटखटाने की आवाज आयी। मधु ने दौड़कर द्वार खोला, पर द्वार पर तो अनिल नहीं, दूसरा व्यक्ति था। चमकदार वेशभूषा और तेजस्वी आकृति से उसे मालम हुआ कि यह युवक राजकुमार होना चाहिए। आगन्तुक युवक ने पूछा--"अनिल कहाँ है, मुझे आवश्यक कार्य है। उससे गुप्त मंत्रणा करनी है।" । मधु-"आते ही होंगे। आप अन्दर पधारिए, और आराम से विराजिए। कुछ सेवा का अवसर दीजिए।" युवक मधु के सभ्यतापूर्ण व्यवहार से प्रभावित हुआ, और कमरे में जाकर आराम कुर्सी पर बैठ गया। अनिल के मुन्न और मुन्नियों से वह मीठी-मीठी बातें करने लगा। मधु ने बहुत ही शीघ्रता से केसर, बादाम पिस्ते, इलायची Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy