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विक्रमादित्य - "किसलिए नहीं चाहिए ?"
वृद्ध - मैं यहाँ से गया, परिवार के चारों सदस्य हम एकत्रित हुए । मैंने चारों वस्तुओं का महत्त्व बताया। मेरी पत्नी बोली- मैं इतने वर्षों से चुल्हा फूंकती रही हूं। कभी भी मनपसन्द भोजन नहीं खाया। आप हण्डिया मांगलो, ताकि जीवन भर खाने-पीने की तो समस्या न रहे
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फूल और पराग
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पुत्रवधू ने कहा- मुझे तो बढ़िया कपड़े और आभूषण पहनने की इच्छा है, अतः आप अन्य वस्तुएं न मांग कर पेटी मांग लें ।
लड़के ने कहा- हम लोग तो इस भयानक जंगल में पड़े हैं। बाप दादाओं ने इस जंगल में से कभी बाहर निकल कर नहीं देखा कि इस जंगल से बाहर भी कोई दुनिया है या नहीं | हम भी सो तरह घरों में ही अपना जीवन समाप्त कर देंगे, अतः मेरी इच्छा है कि घोड़ा लिया जाय, और खूब विदेशयात्रा को जाय ।
वृद्ध ने कहा - " मेरी इच्छा थी कि थैली ली जाय । जहां पर धन है वहां पर कोई भी समस्या नहीं है । किन्तु हमारे में समाधान न हो सका। यदि मैं इन चार वस्तुओं में से एक लेता हूँ तो संघर्ष होता, पारिवारिक जीवन में कलह पैदा होता. एतदर्थ मैंने यही निश्चय किया कि कोई भी वस्तु नहीं लेना ।"
विक्रमादित्य ने चारों वस्तुएं वृद्ध के हाथ में थमाते हुए कहा - लो ये चारों वस्तुएं तुम्हें देता हूँ जिनको जो पसन्द हो वह ले लेना, तथा आनन्द से रहना । सर्वस्व
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