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________________ ३८ फूल और पराग दी । मयणल्लदेवी अपने अनुचर तथा सखी सहेलियों के साथ चल पड़ी । जयकेशी ने एक दूत राजा कर्ण के पास भेजा । दूत ने मयाल्लदेवी का फोटू तथा राजा का सन्देश कर्ण को दिया कि एक अनमोल वस्तु मैं आपको भेंट भेज रहा हूं उसे स्वीकार कर अनुगृहित करें । राजा कर्ण उस अनमोल वस्तु को देखने के लिए नगर से बाहर आये । मल्लदेवी ने राजा कर्ण से विवाह का प्रस्ताव रखा । किन्तु कर्ण ने शारीरिक सौन्दर्य के अभाव में उसके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया । मयरगल्लदेवी ने कहा - " पतिदेव ! आपने आर्य कन्या को पहचाना नहीं है, आप उसके देह को देख रहे हैं, देही को नहीं, उसके रूप को देख रहे हैं स्वरूप को नहीं । आप भले ही मुझे ग्रहण करें या न करें, मैं तो आपको ग्रहण कर चुकी हूं। आप ग्रहण नहीं करते हैं तो अब इस देह का उपयोग ही क्या है यहीं पर चिता में जलकर भस्म हो जाती हूँ । राजकुमारी के आदेश से चिता तैयार की गई । चिता में प्रवेश करने के लिए राजकुमारी ज्योंही कदम बढ़ा रही थी, त्योंही राजमाता उदयमती वहाँ आगई । उसने राजकुमारी को हाथ पकड़कर रोक दिया और पुत्र कर्ण की ओर मुड़कर बोली- "पुत्र ! तू जीवित है, तेरे सामने तेरी पत्नी चिता में प्रवेश करे, यह कहाँ का न्याय है ? मेरी वध चिता में कभी भी प्रवेश नहीं कर Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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