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________________ फूल और पराग बताए हुए समय पर मैं उपस्थित हो गया है।" महात्मा ने कहा- "एक शिष्य और भी आने वाला है, उसे भी मैंने यही समय दिया था, वह आता ही होगा, जरा उसकी भी प्रतीक्षा करलें।" महात्मा ने ज्यों ही दूसरे युवक का नाम लिया त्यौं ही उसके मन में ईर्ष्या की आग भड़क उठी। उसने कहा--"गुरुदेव ! जो व्यक्ति समय का ध्यान न रखे, उससे अन्य क्या अपेक्षा रखी जा सकती है, वह कभी भी बड़ा आदमी बनने के योग्य नहीं हो सकता।" ___महात्मा मौन रहे । वे उसके अन्तर्ह दय को टटोलने लगे। कुछ समय के पश्चात् दूसरा युवक भी दौड़ता हुआ आ पहुंचा। उसके शरीर से पसीना च रहा था, उसके वस्त्र कीचड़ से लथपथ थे। महात्मा को नमस्कार कर वह उनके चरणों में बैठ गया। महात्मा ने पूछा- "वत्स ! विलम्ब कैसे हो गया ?" युवक ने कहा- "गुरुदेव ! मैं ठीक समय पर उपस्थित हो जाता, पर मार्ग में एक मजदूरन खड़ी थी, उसके घास के गट्ठर को उठाने में, एक वृद्ध गाड़ीवान् को गाड़ी को कीचड़ से बाहर निकालने में, और एक अन्धी भिखारिन को धूप से वृक्ष की छांह में ले जाने में कुछ समय लग गया। मेरा अन्तर्ह दय मुझे पुकार रहा था कि इनकी उपेक्षा करना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है । विलम्ब के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं।" Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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