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________________ परिवर्तन १०६ सोलह वर्ष रहकर उसने करोड़ों रुपए कमाए ! प्रभा ने रजनी को पत्र लिखा, प्रियतम ! यहाँ से गये हुए को अठारह वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। आप दो वर्ष बम्बई रहे और सोलह वर्ष अमेरिका में । आपके जाने के कुछ दिन बाद ही आपके पुत्र हुआ, मैंने उसका नाम नरेन्द्र रखा है। वह ह.-बहु आपके समान ही है । गौर बदन, तेजस्वी नेत्र, विशाल भुजाएँ उन्नत ललाट । लोग कहते हैं यह तो रजनीकान्त की ही प्रतिकृति है । उसने मुझे कितनी बार कहा है कि पिताजी कब आवेंगे ? वह आपके दर्शनों के लिए लालायित हो रहा है । आप एक बार शीघ्र आजाइए, फिर यदि आवश्यक कार्य हो तो पधार जाइएगा। . रजनीकान्त ने पत्र पढ़ा, उसे विचार हुआ कि अब मुझे एक बार अवश्य ही घर जाना चाहिए। उसने अपना प्रोग्राम बनाया और पुत्र नरेन्द्र व प्रभा को पत्र लिख दिया कि दिनाङ्क पाँच जनवरी को स्टीमर से रवाना होकर पाँच फरवरी को पाँच बजे प्रातःकाल में बम्बई बन्दरगाह पर उतरूंगा। वम्बई में बन्दरगाह के सन्निकट जो नवीन 'स्मृति' धर्मशाला है उसमें ठहरूंगा। पत्र पढ़कर प्रभा प्रमुदित थी। नरेन्द्र जब कालेज से आया तब प्रभा ने कहा-पाँच फरवरी को पाँच बजे तुम्हारे पिताजी बम्बई आ रहे हैं ' क्या तुम उनके स्वागत के लिए बम्बई जाओगे । देखो यह उनका पूरा पता है। प्रभा ने पत्र को देते हुए कहा । Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003196
Book TitleFool aur Parag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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