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फूल और पराग आकर उसने योगी से पूछा- "योगीराज! इधर से कोई राजा तो नहीं निकले हैं न ?"
योगी- 'मंत्री प्रवर ! राजा तो इधर से नहीं गये हैं, पर एक सिपाही अवश्य गया है। मंत्री ने अपना घोड़ा आगे बढ़ा दिया। मंत्री के जाने के कुछ समय बाद ही राजा भी उधर निकल आया। उसने योगी को नमस्कार कर पूछा-"योगीश्वर ! इधर कोई व्यक्ति तो नहीं आये न ?"
योगी ने अपनी आँखों पर हाथ फेरते हुए कहा --- "राजन् । तुम्हारी खोज में मंत्री और सिपाहो आया था।"
राजा ने योगी के चेहरे को गहराई से देखा, उसे मालूम हो गया कि योगी के नेत्र ज्योति नहीं है, फिर . भी इसने मुझे राजा कहकर कैसे सम्बोधित किया है। मेरे साथियों को भी यह मंत्री व सिपाही के रूप में किस प्रकार पहचान गया । उसने योगी के सामने अपने हृदय की जिज्ञासा प्रस्तुत की।
योगी ने अपनी अनुभव मणि-मंजूषा खालते हुए कहा-"राजन् ! आदमी की पहचान नेत्रों से नी,वारणी से होती है। सबसे पहले तुम्हारी खोज में सिपाहो आया था, उसने मुझे योगीड़ा कहा था--- मैं समझ गया कि यह वारणी किसी उच्च कुल के व्यक्ति की नहीं हो सकती। यह निम्न कुलोत्पन्न सिपाही होना चाहिए। उसके बाद तुम्हारा मंत्री आया था, उसने मुझे योगी राज कहा था-मैं समझ गया यह मंत्री होना चाहिए।
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