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परीक्षा
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एक दिन राजा का एक प्यारा और सुन्दर मोर राजमहल से उडता हुआ उसकी हवेली की छत पर आ गया । उसने विचार किया कि अच्छा है राजा की परीक्षा भी कर लू । उसने मोर को एक कमरे में छिपा दिया। राजा मोर न मिलने से चिन्तित हआ, उसने उज्जैनी में यह उद्घोषणा करवाई कि जो मोर लाकर देगा उसे पुरस्कार दिया जायेगा। - प्रवीण राजा के पास गया, राजा को एकान्त में जाकर कहा–राजन् । आपका मोर उडता हुआ मेरे यहाँ आया, उस समय मेरी बुद्धिभ्रष्ट हो गई और मैंने मोर को मार दिया। ये देखिए मोर ने जो हीरे पन्ने आदि के आभूषण पहने थे वे ये हैं।
राजा-क्या कहा तू ने मोर मार दिया, अरे दुष्ट यह तूने क्या किया, इसका यही दण्ड है कि तुझे अभी मृत्यु दण्ड देता हूं, मैं तेरे समान हत्यारे का मुह तक देखना नहीं चाहता। जा तेरे अन्तिम समय में मेरी इच्छा है कि एक प्रहर का समय है तू अपने परिवार वालों से मिलके आजा। इतने में सूली भी तैयार हो जायेगी।
वह सीधा ही घर पर पहँचा और अपनी पत्नी वोणा से कहा-वीणा ! देख मेरे से एक भयंकर भूल हो गई है, मैंने राजा के प्रिय मोर को मार दिया है। राजा ने मुझे मृत्यु दण्ड की सजा दी है, बता क्या मुझ तू इस मकान में कहीं छिपा सकती है ? इस समय मेरे प्राणों की रक्षा करना तेरा कर्तव्य है।
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