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अमर फल
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देवी ने ब्राह्मण के हाथ में एक फल रखते हुए कहायह साधारण फल नहीं है। यह अमर फल है, इसे खाने पर व्यक्ति सदा के लिए अमर हो जाता है। देवी अन्तान हो गई।
ब्राह्मण को धन चाहिए था, पर धन के स्थान पर अमर फल मिला! उसने उसे खाने की तैयारी की पर दूसरे ही क्षण उसे विचार आया, यदि अमर फल खाकर अमर बन गया तो जीवन भर दरिद्रता में फंसा दुःख भोगता रहूँगा। इससे तो श्रेष्ठ यही है परोपकारी राजा भर्तृहरि को समर्पित कर दं। जिससे जनता का भी भला होगा, राजा प्रसन्न होकर मुझे धन देगा, जिससे मेरी दरिद्रता मिट जायेगी।
उसने उसी समय राज-सभा में जाकर वह फल राजा को अर्पित किया। भत हरि ने विनोद करते हुए कहाब्राह्मण देवता ! मुझे तुम्हें दक्षिणा देकर सम्मान करना चाहिए था, पर आप तो उलटा मुझे उपहार दे रहे हैं।
ब्राह्मण ने कहा-राजन् । यह साधारण फल नहीं है। तीन दिन की उपासना व साधना के पश्चात् देवी ने प्रसन्न होकर इसे मुझे दिया है । इसका नाम अमर फल है ! ज्यों हो मैं इसे खाने बैठा, त्यों ही मेरे मन में यह विचार आया कि मैं गरीब हूँ फिर पृथ्वी का भार क्यों बनू । आपके समान परोपकारी सम्राट् खायेंगे तो जनता का भी दीर्घकाल तक कल्याण होगा। अतः इसे स्वीकार कर मुझे आप अनुगृहीत करें।
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