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अमर फल
धारा नगरी में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसने अपनी दरिद्रता को दूर करने के लिए अनेक प्रयत्न किये, पर किसी में भी सफलता प्राप्त न हुई। उसने तीन दिन तक अन्न जल ग्रहण किये बिना ही एकाग्रचित्त से देवी की उपासना की। तीसरे दिन देवी ने साक्षात् दर्शन दिये। ब्राह्मण फूला नहीं समाया उसने देवी से दरिद्रता मिटाने का अनुरोध किया। देवी ने स्पष्ट शब्दों में कहा -- भूदेव ! तुम्हारे भाग्य में सम्पत्ति नहीं किन्तु विपत्ति लिखी है, किसी का भी सामर्थ्य नहीं कि उसे कोई भी बदल सके।
ब्राह्मण एकदम निराश और हताश हो गया। उसने दीन स्वर में कहा तो क्या मेरी तीन दिन की तपस्या भी व्यर्थ हो जायेगी।
देवी ने साहस बंधाते हुए कहा-इतने घबराओ मत, तुम्हारे, भाग्य में कुछ सफलता भी लिखी है।
ब्राह्मण में आशा का संचार हो गया। उसने कहाजो लिखा है वह दीजिए।
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