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अमिट रेखाएं ने स्वर्णकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उसी दिन राजा ने अनुचरों के आँखों पर पट्टियां बाँध कर घोड़े को ले चलने लिए आदेश दिया । राजा आगे चल रहा था और मंत्री पीछे । विकट घाटियों को लांघते हुए वे कुछ ही घंटों में राजकुमारी के महलों में पहुंच गये। राजकुमारी घोड़े को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई। घोडे को वहीं पर छोड़कर मंत्री और और राजा लौट गए।
राजकुमारी हाथ फिराकर अच्छी तरह से घोड़े को देख रही थी। सहसा घोड़े का पेट खुला और उसमें से शौर्यसिंह बाहर निकल आया । रात्रि के समय एक युवक को अपने महल में देखकर राजकुमारी स्तम्भित थी। शौर्यसिंह ने उसी समय कहा- राजकुमारी ! भयभीत न बनो, मैं कोई उचक्का युवक नहीं हूँ, मैं राजकुमार हूं, बिना तेरी इच्छा के मैं एक कदम भी आगे न रखूगा । मेरी इच्छा तुम्हारे साथ विवाह की है, यदि तुम चाहोगी तो तुम्हारे पिता की प्रतिज्ञा पूर्ण हो सकेगी।
राजकुमार शौर्यसिंह के दिव्य रूप और वाक् चातुर्य को देखकर राजकुमारी स्वर्णलता अत्यधिक प्रभावित हुई । उससे कहा-आप मेरे पिता की प्रतिज्ञा पूर्ण करें। ___ रात भर स्वर्णलता के साथ शौर्यसिंह की मधुरमधुर बातें होती रही। रात पूर्ण होने के पहले ही शौर्यसिंह घोड़े में जाकर बैठ गया।
दूसरे दिन राजा राजकुमारी के महलों में आया, घोड़े के सम्बन्ध में चर्चायें चली, राजकुमारी ने मुक्त
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