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अमिट रेखाएं
सामने रखी और पानी को गंगा मान स्तवना करने लगा। पण्डित को यह देखकर गुस्सा आ गया, उसने कहा-अरे पापी ! इस अपवित्र पानी को गंगा मानता है।
भक्त रैदास भक्ति में लीन था। कुछ ही क्षण में गंगा माता हाथ में कंगन लेकर उपस्थित हुई, उसके हाथ में कंगन दिया और उसके हाथ में रखी सुपारी को लेकर अन्तर्ध्यान हो गई । रैदास ने वह कगन पण्डित को दे दिया।
पण्डित देखता ही रह गया। उसने श्रद्धा से भक्त रैदास से चरणों में सिर झुका दिया । तुम चमार नहीं ब्राह्मण हो, तुम्हारी साधना महान है।
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