________________
अमिट रेखाएं
धनदेव का नाम सुनते ही धनेश्वरी की आँखें आंसुओं से छलछला आईं। भगवन् ! घर में जितना भी धन था वह खर्च हो गया। कहते हैं कि पूर्वजों ने घर में बहुत सारा धन गाड़ रखा है, पर स्थान का पता न होने से वह हमें मिल न सका धनहीन व्यक्ति का कहीं भी आदर नहीं होता, वे अन्त में धन कमाने के लिए विदेश गये।
आचार्य स्थूलभद्र ने अपने निर्मल ज्ञान से जान लिया कि घर में कहां पर धन गड़ा हुआ है। आचार्य जी जहां खड़े थे सामने ही एक स्तम्भ था, जिसके नीचे विराट् वैभव गड़ा हआ था। धर्मोपदेश के व्याज से आचार्य स्थूलभद्र ने स्तम्भ की ओर हाथ का संकेत करते हुए कहा-भद्र ! संसार के स्वरूप को तो देखो, घर में धन गड़ा पड़ा है और तेरा पति विदेश में घूम रहा है !
धनेश्वरी समझ गई कि धन कहां पर गड़ा हुआ है। आचार्य कुछ दिनों तक श्रावस्ती में रुके फिर अन्य प्रदेश की ओर प्रस्थान कर दिया।
कुछ समय के पश्चात् धनदेव विदेश से घर लौटा । धनेश्वरी ने प्रेम से उसका स्वागत किया, और कहाआपके विदेश जाने के पश्चात् आपके परम मित्र जैनाचार्य स्थूलभद्र यहां पर पधारे थे। उन्होंने इस कुटिया को भी पवित्र किया। धर्म देशना प्रदान करते समय उन्होंने इस स्तम्भ की ओर संकेत किया था।
धनदेव चिन्तन करने लगा-महान् आचार्य की कोई भी प्रवृत्ति निष्प्रयोजन नहीं हुआ करती। अवश्य ही इस
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org