________________
१२०
अमिट रेखाएं के पात्र से सुशोभित था । मुनि ने पृथ्वी पर पात्र रखा, बहिन ने वह भोजन, नहीं, नहीं, वह शाक डाल दिया, साधु पात्र में । मुनि तो कहता ही रहा थोड़ा-थोड़ा किन्तु उसने समस्त शाक देकर ही विश्राम लिया। ____ मुनि लेकर लौट पड़ा, आचार्यश्री विराजमान थे, आहार सारा सामने रखा, देखिए गुरुदेव ! यह लाया हूँ।
वत्स ! मासखमण की दीर्घ तपस्या के पारणे में केवल शाक ही। __ भगवन् ! क्या कहूँ, उस बहिन की भक्ति, मेरे मना करने पर भी, उसने समस्त शाक दे दिया । कृपा कीजिए "साह हुज्जामि तारियो" के शास्त्रीय स्वर में उस श्रमण ने सद्गुरुवर्य से प्रार्थना की।
प्रार्थना को सन्मान देते हुए आचार्यश्री ने शाक का एक कण मुंह में रखा, तुरंत उसे पुनः बाहर निकाल दिया। वत्स ! यह क्या लाया है, यह तो जहर है, हलाहल
देव ! मुझे पता नहीं था, कृपया मेरे अपराध को क्षमा कीजिए । आपको कष्ट हुआ। ___ अन्य शिष्यों को आज्ञा प्रदान करते हए आचार्यश्री ने गंभीर मुद्रा में कहा-जाओ! इस आहार को एकान्त स्थान में डाल आओ।
गुरुदेव ! यह मेरा कार्य है, इसे मैं ही करूंगा, अन्य को इसके लिए कष्ट न दीजिए, आचार्य विवश थे।
वह मासिकब्रती मुनि, हाथ में पात्र लेकर चल पड़ा
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org