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कला का देवता
दोनों लड़कियों ने मेरे से अत्यधिक अनुनय किया और कहा-नाथ ! पिता ने आपके चरणों में, हमें समर्पित कर दिया है, आप कहां पधार रहे हैं ? आप यहीं रहें, लड्डूओं की कोई कमी नहीं है । सन्त जीवन आप जैसे सुकुमारों के लिए कठिन है!
जब मैंने मना किया तब वे टप-टप आँसू बरसाने लगी, मैंने कहा-रोओ मत, गुरुदेव से पूछ कर आता हूँ, अतः गुरुदेव' मैं जा रहा है, वे मेरी इन्तजार कर रही होंगो । जहाँ कला की परख हो वहीं रहन में आनन्द है ।
जाते हुये शिष्य को रोकते हुये गुरुदेव ने कहावत्स ! जा तो रहे हो, मैं तुम्हें बांध कर नहीं रोक सकता, पर जाते-जाते एक बात मेरी स्मरण रखना कि 'जिस घर में मद्य-मांस का आहार होता हो वहाँ मत जाना' ।
शिष्य शीघ्रता में था, हां करके चल दिया। उसने दोनों बालाओं से पूछा-तुम मद्य मांस का आहार तो नहीं करती हो न ! यदि करती हो तो मैं पुनः जाता हूँ। बालाओं ने कहा-नहीं! और वह वहां रह गया। आमोद प्रमोद करते हुये कई वर्ष व्यतीत हो गये।
आज उसे नाटक करना था, उसने अपनी दोनों पत्नियों से कहा-आज मैं पुनः नहीं लौट सकंगा। और वह नाटक करने के लिए चल दिया। पत्नियों ने सोचा पति आज तो आयेंगे नहीं अतः चिरकाल की अभिलाषा पूर्ण करलें । उन्होंने खूब मद्य-मांस का सेवन किया और नशे में बेहाल हो गई। मक्खियां भिनभिनाने लगी। इधर
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