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________________ मौन की महत्ता ८३ रात-दिन बड़बड़ाते रहते हो, अतः तुम्हारा और हमारा साथ कभी भी निभ नहीं सकता । कछुए ने प्रतिज्ञा करते हुए कहा - मित्र ! मैं तुम्हें यह विश्वास दिलाता हूँ कि मैं पूर्ण मौन व्रत का पालन करूंगा। हंसों ने जब कछुए की यह प्रतिज्ञा सुनी तो वे बहुत ही प्रसन्न हो गये और उसे कहा - मित्र ! इस लकड़ी के मध्यभाग को तुम अच्छी तरह से पकड़ लो । दाँतों से खूब कसकर पकड़ना । उसके पश्चात् दोनों हंसों ने एक-एक किनारे को अपनी चोंच में पकड़ा और अनन्त आकाश में उड़ चले | कछुए को आकाश में उड़ने का अपूर्व आनन्द आ रहा था और उस आनन्द को वह उन्हें बताना चाहता था पर उसे उसी समय अपने मौन व्रत की स्मृति हो आई और वह मौन हो गया । सिनेमा के चलचित्र के तरह रंग-बिरंगे दृश्यों को देखकर वह विस्मित था । तीनों आगे बढ़ रहे थे । वे एक गाँव के ऊपर से होकर जा रहे थे तभी नीचे से लोगों ने देखा और उन्होंने साश्चर्य कहा — देखिए, कैसा कलियुग आ गया है । हंस जो मोती चुगते हैं वे आज एक मुर्दे कछुए को पकड़कर ले जा रहे हैं। ग्राम निवासियों की यह बात सुनते ही कछुआ तिलमिला उठा । ग्रामवासियों Jain Education Internationalte & Personal [email protected]
SR No.003194
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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