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________________ गागर में सागर चलता हुआ मेरा बेटा आ रहा है । बातों ही बातों में वह पास में आ गया और अपनी माँ को देखकर बोला - माँ ! तुम बहुत ही धीमे-धीमे चल रही हो । देखो, मैं अभी दंगल में एक पहलवान को पछाड़ कर आया हूँ । मुझे बहुत ही जोर से भूख सता रही है अतः जल्दी घर पर पहुँची । मैं सीधा घर ही जा रहा और यह कह वह आगे बढ़ गया । 1 इतने में तीसरी महिला का पुत्र भी आ गया जो दूसरे गाँव गया हुआ था । उसने आते ही सर्वप्रथम माँ के सिर से घड़ा ले लिया और कहा - माँ ! तू क्यों पानी भरने आई, मैं गांव से आ ही तो रहा था । और वह घड़ा लेकर आगे बढ़ गया । दोनों महिलाएँ उसके इस व्यवहार को देखकर विस्मित थीं । वे मन ही मन तुलना कर रही थी अपने अपने पुत्रों से कि सच्चा मातृभक्त पुत्र कौन है । — Jain Education Internationalte & Personal Usev@rjainelibrary.org
SR No.003194
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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