________________
पाप की स्मृति
उसने उसी समय बुरे कार्य न करने की प्रतिक्षा ग्रहण की और श्रेष्ठ कार्य करने लगा। जब वह कोई भी श्रेष्ठ कार्य करके लौटता तो माँ उस कमरे में से गड़ी हुई एक कील निकाल देती। कई वर्षों तक यह क्रम चलता रहा । एक दिन लड़के ने देखा कि में एक भी कील नहीं है । उसे मन में बहुत ही शान्ति हुई। उसने पूछा- माँ ! अब तो मेरे जीवन में कोई भी पाप न रहा न !
पुत्र
! कीलें तो सभी निकल गई हैं पर उनके दाग अभी भी विद्यमान हैं जो तुम्हारे पाप की स्मृति दिला रहे हैं अतः ऐसे कार्य करो जिससे ये दाग भी मिट जायें ।
0
Jain Education Internationalte & Personal Usev@rjainelibrary.org