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गागर में सागर
बुढ़िया चिरकाल से इसी प्रश्न की प्रतीक्षा में थी। ज्योंही उसने प्रश्न सुना, त्योंही उसने कहाबेटा ! मैं बहुत ही भूखी हूँ। कई दिनों से मुझे कुछ भी खाने को नहीं मिला है। भोजन के अभाव में प्राण निकले जा रहे हैं । यदि कोई दया करके दो रोटी दे दे तो कितना अच्छा हो।
यह सुनते ही बालक का कोमल हृदय द्रवित हो गया। उसने अपने खाने का डिब्बा खोला, उसमें से दो रोटी और सब्जी जो वह खाने के लिए लाया था, उस बढ़िया को दे दी और बोला-माँ ! रोना नहीं । मैं इसी तरह रोज इसी समय तुम्हारे को रोटियाँ लाकर दूंगा।
बुढ़िया ने प्रसन्न होते हुए वे रोटियाँ खा ली और उसे आशीर्वाद दिया। आज दिन में उस बालक ने कुछ भी नहीं खाया तथापि उसके चेहरे पर अपूर्व प्रसन्नता थी।
दूसरे दिन बालक ने माँ से कहा-माँ ! बहुत तेज भूख लगती है इसलिए मेरे डिब्बे में प्रतिदिन चार रोटियाँ रखा करो। माँ को आश्चर्य हुआ कि मेरे पुत्र को प्रतिदिन भूखा रहना पड़ता है । प्रतिदिन बालक स्कूल आते ही उस बुढ़िया के पास पहुँचता
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