SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : ७७: करुणा एक स्कूल में अनेक विद्यार्थी पढ़ने आया करते थे। विद्यार्थियों के साथ उनकी माताएँ मध्याह्न के समय खाने के लिए एक डिब्बा भी देती थी और जब अल्पाहार की घण्टी बजती तो सभी बच्चे मिल-जुल कर भोजन करते और फिर पढ़ने में लग जाते। विद्यालय के द्वार पर ही एक वृद्धा बैठी रहती थी। वह बच्चों की किलकारियाँ सुनती, उनको खेलते-कूदते देखती तो उसका हृदय नाचने लगता। पर वह भूखी और प्यासो थी। अतः उसको हँसी-खुशी कुछ ही समय में उदासी में परिणत हो जाती। एक दिन बुढ़िया के सामने एक नन्हा-सा मुन्ना आकर खड़ा हो गया। उसने धीरे से पूछा-माँ ! तुम यहाँ बैठी रहती हो, तुम्हें क्या चाहिए ? Jain Education Internationa eftersonal [email protected]
SR No.003194
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy