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करुणा
एक स्कूल में अनेक विद्यार्थी पढ़ने आया करते थे। विद्यार्थियों के साथ उनकी माताएँ मध्याह्न के समय खाने के लिए एक डिब्बा भी देती थी और जब अल्पाहार की घण्टी बजती तो सभी बच्चे मिल-जुल कर भोजन करते और फिर पढ़ने में लग जाते। विद्यालय के द्वार पर ही एक वृद्धा बैठी रहती थी। वह बच्चों की किलकारियाँ सुनती, उनको खेलते-कूदते देखती तो उसका हृदय नाचने लगता। पर वह भूखी और प्यासो थी। अतः उसको हँसी-खुशी कुछ ही समय में उदासी में परिणत हो जाती।
एक दिन बुढ़िया के सामने एक नन्हा-सा मुन्ना आकर खड़ा हो गया। उसने धीरे से पूछा-माँ ! तुम यहाँ बैठी रहती हो, तुम्हें क्या चाहिए ? Jain Education Internationa eftersonal Usev@jainelibrary.org