________________
पढ़ना और गुनना
१४७
राजकुमार मे चट से उत्तर दिया- चक्की का
पाट ।
राजा ने वही प्रश्न आचार्यपुत्र से भी किया । आचार्यपुत्र ने एक क्षण चिन्तन के पश्चात् कहाराजन् ! आपकी मुट्ठी में चाँदी की अंगूठी है ।
राजा ने मुट्ठी खोलकर बताया कि उसके हाथ में जैसा आचार्यपुत्र ने कहा है वैसी ही अंगूठी है । सारी सभा विस्मयविमुग्ध हो गयी ।
राजा ने आचार्य को अपने सन्निकट बुलाकर कहा- मुझे तुम्हारे से यह आशा नहीं थी । तुमने अध्ययन करवाने में पूर्ण पक्षपात किया है । अपने पुत्र को तुमने अच्छे ढंग से पढ़ाया और मेरे पुत्र को उस तरह नहीं पढ़ाया । अत: तुम दण्ड के अधिकारी हो ।
आचार्य ने कहा -- राजन् ! मैंने दोनों को समान पढ़ाया है । राजपुत्र ने पढ़ा अवश्य है, किन्तु गुना नहीं । उसे इतना भी ध्यान नहीं कि हाथ की मुट्ठी में चक्की का पाट कैसे हो सकता है ? अध्ययन कराना मेरा कार्य था । किन्तु सोचने और समझने का कार्य तो उसका स्वयं का है । यदि स्वयं में विवेक नहीं है तो चाहे कितना भी पढ़ाया जाय, वह विद्या के रहस्य को नहीं समझ सकता ।
0
Jain Education Internationalte & Personal Usev@rjainelibrary.org