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धर्म से घृणा क्यों?
एक स्थान पर सर्वधर्म सम्मेलन था। सभी धार्मिक नेता अपने धर्म की प्रशंसा और दूसरे धर्म की निन्दा कर रहे थे। मैंने देखा वह धर्म सम्मेलन एक प्रकार से धर्म का अखाड़ा बन चुका था।
जब मुझे बोलने के लिए कहा गया तब मैंने कहा-एक व्यक्ति के मकान में आग लग गई है। आग बुझाने के लिए अनेक टोलियाँ वहाँ आ रही हैं। एक टोली कहे कि हम आग बुझा सकते हैं। दूसरी कहे कि वह नहीं, हम बुझा सकते हैं । इस प्रकार आग न बुझाकर परस्पर लड़ती रहें तो वह मकान देखते ही देखते जलकर भस्म हो जायेगा।
यही स्थिति आज हमारी है। प्रत्येक धर्म वाला अपने धर्म की प्रशंसा करता है, प्रशंसा के साथ ही वह
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