________________
प्रेरणा-स्रोत
सन्त मलूकदास एक पहुंचे हुए सन्त थे। वे एक बार कहीं जा रहे थे। उनकी दृष्टि मार्ग में इधर से उधर लडखडाते हए शराबी पर गिरी। उन्होंने उसे सावधान करते हुए कहा-जरा सावधान होकर चलो, नहीं तो गिर जाओगे। शराबी ने कहा-आप मेरी चिन्ता न करें। यदि मैं गिर गया मेरा शरीर ही खराब होगा, जो जरा-से पानी से साफ हो जाएगा। किन्तु आपके गिरने से आपका जीवन ही मलिन हो जाएगा, जिसका शुद्ध होना कठिन है। इसलिए आपको अधिक सम्भलकर चलना है।
सन्त मलूकदास को उस शराबी के कथन से अत्यधिक प्रेरणा मिली। उसे उन्होंने अपने गुरु के रूप में मान लिया।
Jain Education InteFoatinate & Personal usev@ņainelibrary.org