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सत्य नहीं, झूठ
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बताया पर कोई ग्राहक पगड़ी खरीदने को प्रस्तुत नहीं हुआ।
पुत्री ने कहा-पिताश्री ! आप चिन्ता छोड़िये । अभी जाती है और मैं बाजार में पगड़ी बेचकर आती हूँ।
वह पगड़ी लेकर गई। उसने ग्राहक को बताया -यह पगड़ी बहुत ही बढ़िया है, इसका मूल्य बारह रुपये है। मैं इसे एक पैसे भी कम में नहीं दे सकती।
ग्राहक ने कहा-मैं बारह रुपये देने की स्थिति में नहीं हूँ। मेहरबानी कर आप इसे नौ रुपये में दे दीजिए।
उसने पगड़ी नौ रुपये में बेच दी। जब वह लौटकर कबीरदास के पास पहुंची तो उसने सारी स्थिति बताई । कबीर ने कहा
सत्य गया पाताल में, झूठ रहा जग छाय । छह रुपयों की पागड़ी, नौ रुपयों में जाय ॥
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