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पुरस्कार नहीं ले सकता
होटल पर पहुंचा और एक डालर लौटाते हुए कहाआठ के बदले नौ डालर कैसे? - विश्वेश्वरय्या ने कहा-मैं आपकी लेखन-कला पर प्रसन्न हूँ। मैंने प्रसन्न होकर ही पारितोषिक के रूप में एक डालर अधिक दिया है।
लेखक ने कहा-आप मुझे दे सकते हैं, पर मैं ले नहीं सकता। जितना पारिश्रमिक हमने निश्चित किया उससे अधिक लेना एक प्रकार से गुनाह है। यदि मैं पुरस्कार प्राप्त करता रहा, तो मेरी मानसिक तृष्णा सदा बढ़ती रहेगी और सभी से मैं यही अपेक्षा करूँगा। तृष्णा ही मानव को दरिद्र बनाती है । मुझे वैसा दरिद्र नहीं बनना है।
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