________________
तृष्णा
उनके मन में अपार ग्लानि हुई। उनके अन्तर्मानस के तार झनझना उठे। इतने बड़े राज्य का परित्याग करके भी माणिक्य उठाने का लोभ न छोड़ सका। ऐसी तृष्णा को धिक्कार है । मैंने
कनक तजा कान्ता तजी, तजा सचिव का साथ । धिक मन ! धोखे लाल के, रखा पीक पर हाय ।।
एक पाश्चात्य विचारक ने भी कहा है-तृष्णा समुद्र के खारे पानी की तरह है । जितना उसका सेवन किया जाय उतनी ही अधिक प्यास बढ़ती जाती है।
Jain Education Internatiroinedte & Personal Usevwrajnelibrary.org