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गागर में सागर
अपने शरीर के लिए इन निरपराध सैकड़ों दम्पतियों के खून से स्नान कर अपने आपको बचाना चाहता है । यह तो सरासर अन्याय है।।
शेरसिंह ने, जो किले का संरक्षक था, अपनी माँ से कहा-माँ! यदि एक के प्राण न्योछावर करने पर, सैकडों के प्राण बचते हों, वह कार्य मुझे करना चाहिए या नहीं ?
माँ ने कहा-परोपकार के लिए तुझे प्राणों का भी त्याग करना हो तो सहर्ष कर ।
माँ की प्रेरणा प्राप्त कर शेरसिंह किले के द्वार पर आकर सभी द्वारों का निरीक्षण करने लगा। उसने किले के पिछले द्वार को खोलकर उन दम्पतियों से कहा-यहाँ से भाग जाइए। यह ध्यान रखना हो हल्ला न हो, चुपचुप निकल जाइए।
यह सुनते ही सभी वहाँ से निकलकर अपने प्राणों को बचाने के लिए भाग गये। प्रातः होने पर राजा को ज्ञात हुआ कि जिन नवदम्पतियों को प्राप्त करने के लिए कठिन श्रम किया गया था, उनको शेरसिंह ने छोड़ दिया है । राजा ने शेरसिंह को पकड़ने के लिए सैनिकों को भेजा। वीरतापूर्वक उन सैनिकों से जूझता हुआ वह राजा के अन्याय का प्रतिकार करने लगा।
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