SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ :४७: प्राणोत्सर्ग धारा नगरी के एक राजा के शरीर में भयंकर व्याधि उत्पन्न हुई । उस व्याधि से वह छटपटाने लगा। अनेक उपचार किये, पर व्याधि शान्त होने के स्थान पर अधिक बढ़ती चली गई। एक ज्योतिषी ने बताया कि राजन् ! आप इस भयंकर रोग से तभी मुक्त हो सकते हैं जब नौ सौ सद्य विवाहित पति-पत्नी के जोड़ों को कोल्हू में पिलवाकर उनके रक्त से स्नान करें। राजा के आदेश से मालव-प्रान्त में से नवदम्पतियों के जोड़े इकट्ठे किये जाने लगे और वे उन्हें राज-किले में रखने लगे। अभी विवाह हए कम समय हुआ था, प्राण के भय से वे करुण आर्तनाद करने लगे। यह दृश्य देखकर किले के संरक्षक शेरसिंह को दया आ गई। अरे, राजा तो रक्षक होता है । वह Jain Education Internatronaate & Personal Usavornainelibrary.org
SR No.003194
Book TitleGagar me Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy