SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोगों के जीवन को रक्षा की थी। आबू पर्वत पर स्थित भीमसिंह प्रासाद अद्यावधि वर्तमान है। ___ 'अभयकुमार श्रेणिक रास' (लि. सं. १५३९ ) का पूर्ण परिचय लेखक द्वारा 'श्रमण' में प्रकाशित किया गया । इसकी पद संख्या ३२१ है। आकार की दृष्टि से यह सुदीर्घ कृति है। अभयकुमार प्रखर बुद्धि के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके पिता प्रसिद्ध मगधपति श्रेणिक भगवान् महावीर के समकालीन हैं। अभय कुमार के सम्पूर्ण जीवन पर आधारित प्रस्तुत कृति, काव्य सौष्ठव तथा रस की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। तत्कालीन विकासात्मक भाषा के अध्ययन के लिए प्रस्तुत कृति निस्संदेह उपादेय है। _ 'थुलिभद्द काक' (लि. सं. १४७३) में ककहरा शैली में 'स्थलिभद्रकोसा' के प्रसंग को ३६ पदों में निरूपित किया गया है। प्रस्तुत कृति देपाल की सर्वप्रथम रचना होने से भाषा दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एक उदाहरण समुचित होगा जर रक्खसि जव आविसिइ नव नासेसि ने हो। पणउ ता जाणीअए जाँ लगि जोवणु एहो ॥१०॥ झलहलंत कंचण रयणहउँ नवि भागउं हव । झाण मिसिइं पाखंड प्रिय तउं मन मंडिसि देव ।। ११ ॥ टगमग जोइसि रहण प्रिअ रहीआ च्यारइ मास । टाले विण सवि आखडीअ पूरिसु मम मनि आस ।।१३।। इसके अतिरिक्त 'थुलभद्द भास' तथा 'थुलभद्द गीत' भी उपलब्ध है । वस्तुतः भास सर्गसूचक शब्द है। संस्कृत महाकाव्यों को सर्गबद्ध शैलो के समान अपभ्रंश प्रबन्ध काव्य अनेक सन्धियों में विभक्त होते हैं। प्रत्येक सन्धि में एकाधिक कड़वक मिलते हैं । कालान्तर में कड़वक का स्थान 'ठवणी' तथा 'भास' ने ग्रहण किया। 'धन्नाशालिभद्द भास' तथा 'गौतमस्वामी भास' गीत ही हैं। आर्द्रकुमार पर आधारित अपूर्ण कृति 'आर्द्रकुमार विवाहल' तथा नेमिनाथ का स्वरूप वर्णन 'नेमिनाथ विवाहलो' में प्राप्त होता है। वस्तुतः पंद्रहवीं शती के प्रमुख जैन कवियों में देपाल का स्थान अग्रगण्य है। कथावस्तु, काव्यसौष्ठव, भाषा एवं शैली को दृष्टि से देवाल का साहित्य महत्त्वपूर्ण है। गुजरात के इस प्रतिभावान् जैनाचार्य के साहित्य का अन्वेषण-अनुशीलन विस्तृत संशोधन की प्रतीक्षा में है। . ८. देखिए, लेखक का लेख-अमयकुमार श्रेणिक रास, श्रमण, वर्ष १९ अंक १०.११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy