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________________ ( ३७ ) की विपरीत गति से १४१२ विक्रम सं० ( १३५५ ई० ) ही आता है। इस आधार पर भावदेवसूरि चौदहवीं शताब्दी के निद्वान् हैं । १२. पार्श्वनाथ पुराण-सकलकोति ___ यह पार्श्वनाथचरित नाम से भी जाना जाता है। वर्ण्यविषय के आधार पर इसका २३ सर्गों में विभाजन किया गया है। इसमें साधना के द्वारा पार्श्वनाथ की निर्वाण-प्राप्ति का वर्णन किया गया है। सकलकीति ने संस्कृत और राजस्थानी में अनेक ग्रन्थों की रचना की । १५वों शताब्दी में विद्यमान पद्मपुराण के रचयिता जिनदास इनके शिष्य थे। विपुलचरितकाव्य प्रणयन की दृष्टि से सकलकीर्ति का नाम सर्वोत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण है। इनके पिता का नाम कर्णसिंह और माता का नाम शोभा था । ये हूबड़ जातीय थे तथा अणहिलपुरपट्टन के रहनेवाले थे। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री सकलकीति का समय वि० स० १४४३-१४९९ (१३८६-१४४२ ई०) मानते हैं । ६१ किन्तु प्रो० विद्याधर जोहरापुरकर ने बलात्कारगण ईडरशाखा कालपट में आचार्यपरम्परा का निर्देश करते हुए सकलकीति का समय वि० सं० १४५०-१५१० (१३९३-१४५३ ई० ) माना है । ६२ इस आधार पर इनका साहित्यिक काल पन्द्रहवीं शताब्दी का प्रारम्भ माना जा सकता है। १३. पासणाहचरिउ'3-रइधू इसकी कथावस्तु ७ सन्धियों में विभक्त है । रइधू की समस्त कृतियों में अपभ्रंशभाषा का यह काव्य श्रेष्ठ, सरस और रुचिकर है। इसमें सम्वाद प्रस्तुत करने का ढंग बड़ा ही सुन्दर और नाटकीय है । ये संवाद पात्रों के चरित्रचित्रण में पर्याप्त सहायक सिद्ध होते हैं। रइधू के पाननाथ चरित की अनेक हस्तलिखित प्रतियां कोटा, व्यावर, जयपुर तथा आगरा के ग्रंथभण्डारों में भरी पड़ी हैं। इससे ग्रन्थ की लोकप्रियता और महत्ता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । रइधू काष्ठासङ्घ की माथुरगच्छ की पुष्करगणीय शाखा से सम्बद्ध थे। अपभ्रश; संस्कृत एवं हिन्दी में इनकी ४० के लगभग रचनायें मिलती हैं। इनके पिता का नाम हरिसिंह, पितामह का नाम संघपति देवराज, माता का नाम विजयश्री तथा पत्नी का नाम सावित्री था। उदयराज नाम का इनका एक पुत्र भी था।६५ कवि ने ग्वालियर नगर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003193
Book TitleJain Sahitya ke Vividh Ayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1981
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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